Saturday 2 July 2011

आप किस तरह के ब्लॉगर है जी?

आप अपने ब्लॉग के लेखन के लिए विषय कैसे तलाश करते है? ये एक यक्ष प्रश्न है, अक्सर सभी चिट्ठाकार इस प्रश्न से रुबरू जरुर होते है। अब क्या है कि सभी ब्लॉगर अपने अपने हिसाब से इस प्रश्न का जवाब ढूंढते है। लेकिन आप किस तरह के ब्लॉगर है जी? ये सवाल थोड़ा अजीब सा लगता है ना?  तो लीजिए जनाब शुरु होता है, हिन्दी ब्लॉगर की किस्में:
bloggingFirst
1) कुछ ब्लॉगर भाई सुबह सबेरे नित्य क्रिया से निवृत होते समय (सटीक समय होता है) अगले लेख के विषय मे सोचते है। ऐसे लोग बिना ड्राफ़्टिया लिखते है। इधर आइडिया आया नही, उधर पोस्ट निकली नही। ये लोग पोस्ट लिखने के लिए किसी खास समय का इंतजार नही करते। शनिवार हो या रविवार, सुबह, दोपहर शाम। कोई पढे या ना पढे, आइडिया की खुजली हुई है तो पोस्ट तो निकलनी ही चाहिए। लेख के लिए बोद्दिक खुजली जितनी ज्यादा होगी, लेख उतना जल्दी निकलेगा। इनको एक और बीमारी होती है, जो सभी ब्लॉगरों मे होती है, अपनी नयी पोस्ट का लिंक टिकाने की। कोई चैट पर आया तो ठीक नही तो ये जनाब बोर्ड पर लिंक टिकाने मे देर नही लगाते। ऐसे ब्लॉगर टिप्पणी लेकर ही जान छोड़ते है।
2) कुछ मौसमी टाइप के ब्लॉगर होते है। हर वक्त इधर उधर तांक झाक करते रहते है। ऐसे लोग आस-पास के माहौल, खबरों और घटनाओं पर नज़र रखते है। जहाँ कुछ बदलाव हुआ नही, दन्न से लेख ठेल दिया। मुशर्रफ नहाने गए, लेख पेल दिया, मुशर्रफ नहाने से मना कर रहे है,  एक और लेख पेल दो। ऐसे ब्लॉगरों के लिए लेख की टाइमिंग बहुत मायने रखती है, ऐसा ना हो मुशरर्फ नहा कर बाहर आए और लेख अभी ड्राफ्ट मे पड़ा हो, लेख ना हुआ, क्रिकेट का स्कोर हो गया। इनके लिए लेख सटीक होना भी बहुत जरुरी नही है। ऐसे लेख लिखन वाले ब्लॉगर अक्सर ढेर सारी न्यूज साइट पर टहलते पाए जाते है।
3) कुछ खबरिया टाइप के ब्लॉगर होते है। ऐसे लोग ज्यादा मेहनत नही करते, सीधे सीधे किसी भी न्यूज साइट पर जाते है, टॉप की खबरों को कॉपी पेस्ट करके अपने ब्लॉग पर ज्यों का त्यों छाप देते है। ये लोग सोचते है कि यही एकमात्र इस न्यूज साइट का पता जानते है, बाकी ब्लॉगर तो यहाँ पर भैंसे चराने आए है। कभी कभी लोग हो-हल्ला भी करते है, अव्वल तो ये किसी की सुनते नही, फिर कभी किसी ने ज्यादा हो-हल्ला किया तो चार पैराग्राफ वाली (कॉपी पेस्ट न्यूज) पोस्ट के नीचे, एक या दो लाइन की अपनी प्रतिक्रिया लिख देते है, लो जी हो गयी स्टोरी। ऐसे लोग कॉपीराइट वगैरहा के बारे मे कुछ नही जानते,जानते भी होंगे तो अनजान बने रहने मे ही भलाई समझते है। ऐसे ब्लॉगर कुकुरमुत्ते की तरह पैदा होते है और खर पतवार की तरह (होस्टिंग कम्पनी द्वारा) हटाए जाते है। कुकुरमुत्ते और खरपतवार को हमने सिर्फ़ मिसाल की तरह बताया है, इसलिए इसको दिल पर मत लिया जाए। अगर किसी खबरी ब्लॉग वाले ने दिल पर ले ही लिया है उनको नसीहत है कि अपने ब्लॉग पर अच्छे लेख लिखकर अपनी ब्लॉगिंग को सार्थक बनाइए। कॉपी पेस्ट करने से ब्लॉग की विश्वसनीयता कम होती है।
4) कुछ लोग और अलग टाइप के होते है, इंटरनैट खंगालते रहते है, जो भी उन्हे अच्छा लगता है, बिना सोचे समझे, अपने ब्लॉग पर ठेल देते है(जैसे जुगाड़ी)। ऐसे लोग सोचते है कि वे लोग (जुगाड़ी लिंक देकर) सामाजिक धर्म निभा रहे है, गोया कि दुनिया मे अकेले वही वैब सर्फिंग करते है। अब चाहे विषय साईकिल पंचर ठीक करने का हो, या हवाई जहाज कैसे खरीदे। उनकी बला से। अब ये लिंक देने से पहले ये भी नही सोचते कि कुंवारो को बच्चों के डायपर बदलने का लिंक थमा रहे है, या गंजो को बालों के नए नए हेयर स्टाइल के जुगाड़। उनको अपनी पोस्ट पूरी करने की रस्म निभानी है, लिंक टिकाकर, एक दो ग्राफिक्स लगाकर, पोस्ट चिपका दी। लो जी हो गयी समाज सेवा। सेवा की सेवा, पोस्ट की पोस्ट, बंदा पढे, माथा पीटे या सर पकड़कर रोए, इनका क्या। करेले मे नीम तब चढ जाती है जब ये चैट पर आकर, पिछ्ली जुगाड़ी पोस्ट के बाबत चर्चा करते है। अब बंदा सर ना पीटे तो क्या करे।
5) कुछ लोग थोड़े और अलग किस्म के होते है। अधिक काफी धीर गंभीर किस्म के ब्लॉगर होते है। किसी भी लेख को लिखने से ज्यादा उसको दस बार पढने मे लगा देते है। फिर लेख मे प्रयोग किए गए आसान आसान शब्दों (जो इन्हे कतई नही भाते) पर गंभीर शब्दों का मुलम्मा चढाते है। जितना क्लिष्ठ से क्लिष्ठ लिख सकते है लिखते है। एक एक वाक्य के पाँच पाँच मतलब निकलते है, मतलब पाँच विभिन्न तरह के पाठक तो पक्के समझो। ऐसे लोग क्लास ब्लॉगर की श्रेणी मे आते है। इनके लिए लेख एक पूरा सरकारी प्रोजेक्ट होता है, आइडिया दिमाग मे आने से लेकर लेख को पब्लिश करने तक, विभिन्न चरण होते है।
AjhelBlogger
6) कुछ और टाइप के ब्लॉगर होते है जो ऊँचा सोचते है। ऊँचे लोग ऊँची पसन्द। ना..ना.. ये माणिकचंद का पान मसाला नही खाते।  ऊँचा सोचना बोले तो लम्बा लेख और गहरी सोच। ये लोग सुपर रिन के चमकार वाले विज्ञापन से प्रेरित होते है, भला उसका लेख मेरे लेख से लम्बा कैसे? इनके लेख काफी लम्बे होते है, ये कोई अनजाने मे नही होता। इनका तर्क होता है कि पाठक पहले तो लेख देखने आएगा, साइज देखकर, पतली गली से निकल लेगा। दूसरी बार टाइम निकालकर आएगा, अबकि बार तीन पैराग्राफ पढते ही बोल जाएगा(थक जाएगा) या किसी बन्दे ने चैट पर दन्न से सवाल दागा होगा, तो इस बार भी बुकमार्क करके, टरक लेगा। तीसरी बार आएगा, पढेगा। इस तरह से ब्लॉगर को कितने हिट मिले? आप खुद ही जोड़ लीजिए।  दो चार बार पढेगा तो लेख तो समझ मे आ ही जाएगा। नही तो ब्लॉगर चैट पर दन्न से तगादा करें “अरे मियां! मेरा नया लेख पढा? तुम्हारी पसन्द का ही लिखा है, देख लो ये रहा लिंक …… । अब पाठक रुपी ब्लॉगर मरता क्या ना करता, उसको भी तो अपने लेख पर टिप्पणी पानी है, इसलिए दन्न से टिप्पणी मारकर मुस्कराते हुए बोलता है, “गुरुजी आज बहुत बड़ा गदर/झकास लिखे हो।” लेकिन कभी कभी लेख के नीचे लिखी कविता पल्ले नही पड़ती। अव्वल तो पाठक चैट पर इसका जिक्र करने की हिम्मत ही नही करता, अगर करेगा तो खुद झेलेगा। लेखक ब्लॉगर तो बस इसी का इंतजार कर रहा था, शब्द दर शब्द, हिज्जे दर हिज्जे, चैट पर ही कविता की व्याख्या करेगा। उस कविता के विभिन्न भाव समझाएगा। इधर पाठक बेचारा उस समय को कोसेगा, जब उसने कविता का जिक्र छेड़ा हो। खैर अब सांड को लाल कपड़ा दिखाए हो तो झेलो…। (यहाँ पर ध्यान रहे, ब्लॉगर अपने आपको सांड ना समझे ये शब्द आलरेडी हमारे ईस्वामी जी के लिए कापीराइट है।) अलबत्ता पाठक अपने आपको जरुर लाल कपड़ा समझ सकता है।
7) कुछ ब्लॉगर होते है कवि टाइप के। ब्लॉग लिखना इनका शौंक………नही नही, आदत?……. नही यार! वो भी नही, हाँ मजबूरी होती है। इनके गले/दिमाग मे कविता अटकी हुई होती है। इधर कविता दिमाग मे आयी नही, उधर ये उसे कीबोर्ड पर उड़ेल देते है। उसके बाद शुरु होता है तुकबन्दी मिलाने का सिलसिला। ये लोग अक्सर चैट पर पाए जाते है। दो कारणों से, पहला तुकबन्दी के लिए पर्यायवाची शब्दों के बारे मे पूछते हुए। दूसरा अपनी कविता के लिए पोटेंशियल पाठक ढूंढते हुए। आप इधर ऑनलाइन हुए नही, उधर ये आपको लिंक टिकाए नही। अच्छा एक बात और, यदि आप बहुत संयमी है तो आप इनकी बात सुनते है, अन्यथा बिजी का बोर्ड लगाकर निकल लेते है। यदि आप जोखिम उठा सकते है तो उनसे कविता मे दिए गए शब्दों अथवा भावों के बारे मे कुछ कहकर देखिए। बस जनाब! ये शुरु हो जाएंगे। उस शब्द/भाव से सम्बंधित दस और कविताएं पढवाकर ही दम लेंगे। और लो रिस्क, अब झेलो।
8)  कुछ होमवर्क करने वाले ब्लॉगर भी होते है। ये कम लेख लिखते है लेकिन जो भी लिखते है, पूरी पूरी जानकारी इकट्ठा करने के बाद। इनका लिखा पढने के लिए लोग इंतजार करते है। इनके लेख सचमुच सहेजने योग्य होते है। लेकिन ऐसे ब्लॉगर है ही कितने? ऐसे ब्लॉगर ढूंढना तो जैसे भूसे मे से सुई ढूंढने के बराबर है।
9) कुछ ब्लॉगरों को तकनीकी खुजली होती है। बाजार मे कोई नया प्रोडक्ट आया नही, इधर इनकी पोस्ट तैयार। अब इनसे पूछो, अमां अमरीका मे तो ये प्रोडक्ट कल लांच होगा, बाकी दुनिया मे अगले महीने। फिर तुम अफ्रीका मे बैठकर, आज इसकी समीक्षा(Review) कैसे लिख रहे हो? तब जाकर वे समीक्षा बदलकर पूर्वावलोकन (Preview) करते है।
10) कुछ ब्लॉगर, आत्मकथा/आत्मचिंतन टाइप वाले होते है। सुबह सवेरे उठते ही, जो पहला बन्दा मिलता है, जो बातचीत होती है, उसी से आज के लेख का विषय बना लेते है। इनके पास लेख लिखने के लिए विषयों की कभी कमी नही रहती। ऐसे लोग हर छोटी बड़ी बात पर लेख लिख लेते है। सुबह सवेरे टहलने गए, कोई सब्जी वाला दिख गया तो उसके सुख-दु:ख मे शरीक हुए, दन्न से एक ब्लॉग पोस्ट बना ली। इसी तरह दीन दुनिया की कोई भी खबर इनके लिए पोस्ट लिखने का मसाला होता है।
11) कुछ हंगामा टाइप के ब्लॉगर होते है। इनका मकसद ही सनसनी फैलाना होता है। ये पोस्ट टाइटिल मे किसी नामी ब्लॉगर, वैबसाइट का नाम उछालते है। भले ही पोस्ट के अंदर उस बाबत कुछ भी ना लिखा गया हो। उदाहरण के लिए “फुरसतिया, आज तुमको निबटाएंगे” , टाइटिल मे, पोस्ट के अंदर,
“आदरणीय फुरसतिया जी,
हमारी संस्था ने आपके ब्लॉगिंग यात्रा पर गोष्ठी रखी है और आपका नागरिक अभिनन्दन करने का निश्चय किया है। अपने गले का साइज भेजिए और फूलों के रंगो का चुनाव करिए। ताकि आपके साइज की माला की व्यवस्था की जा सके। तीन पाए वाली कुर्सी पर बैठने मे आप सहजता महसूस करेंगे अथवा फिर स्टूल की व्यवस्था की जाए?  रिक्शे की व्यवस्था नही हो सकी है, इसलिए ठेलेवाले को आपके घर का पता दे दिया है। सभा ठीक बारह बजे शुरु होगी, आप नहा-धो कर ग्यारह बजे, ठेलेवाले का इंतजार करें।
-आयोजक : फलाना डिमकाना संस्था (इसके नीचे वो अपना बॉयोडाटा जरुर लिखेगा)”
अब आप ही बताइए, पोस्ट मे फुरसतिया को कहाँ देखा गया? लेकिन ये पोस्ट फुरसतिया के पाठक भी पढेंगे। इस ब्लॉग लेखक को तो एक्स्ट्रा पाठक मिले ना। है कि नही?
12) कुछ ब्लॉगर, बहुत बड़े ब्लॉगर होते है। होली दिवाली ही पोस्ट लिखते है। ये ब्लॉगर अक्सर कोई ईनाम/पुरस्कार वगैरहा जीत चुके होते है। जिसने कभी श्रेष्ठ ब्लॉगर का खिताब जीता, समझो गया काम से। क्योंकि अब वो ब्लॉगरी तो करने से रहा। रोज रोज ब्लॉगिंग करने को ये अपनी तौहीन समझते है। ऐसे लोग कभी कभी चैट पर नजर आ जाते है। वो भी तभी जब इनको आपसे कोई काम पड़े। बातचीत की शुरुवात करने के लिए ये लोग पहले आपकी किसी नयी पोस्ट को पढते है। नमस्कार के बाद उस पोस्ट की तारीफ़ होती है, आप जब तक चने के झाड़ पर चढे, या इनको कोई और लिंक टिकाएं। ये अपने मतलब पर उतर आते है और सीधा बातचीत की दिशा, अपने काम के विषय की तरफ़ मोड़ लेते है। ऐसे ब्लॉगरों को भूतप्रेत सॉरी भूतपूर्व ब्लॉगर कहते है।
13) कुछ ब्लॉगर होते है, जिनको ये भय सताता है कि लोग (पाठक) इन्हे सीरीयसली नही लेते। अब पाठकों की सीरियसनैस को परखने के लिए ये ब्लॉगर याहे बगाहे, ब्लॉगिंग से सन्यास लेने की घोषणा करते रहते है। अब ब्लॉगजगत भी अजीब है, बन्दा पोस्ट लिखेगा तो कोई झांकने नही आएगा, लेकिन मजाल है किसी ने ब्लॉग सन्यास की घोषणा कर दी। जाने कहाँ कहाँ से लोग मनाने आ जाते है, भई मान जा, मत जा। लोगो को ये टेंशन नही होती कि ये ब्लॉगर लिखेगा या सन्यास लेगा, बल्कि ये टेंशन होती है, अगर इसको अभी नही मनाया तो एक पाठक और कम हो जाएगा। जाहिर है, इस मान मनौव्वल मे भी उनका अपना हित होता है।
अब आप इन सभी श्रेणियों मे से किस तरह के ब्लॉगर है? टिप्पणी द्वारा लिखिएगा, यदि आपको लगता है कि आप की श्रेणी का उल्लेख यहाँ नही हुआ है अथवा आप अपनी भी फजीहत करवाना चाहते है तो हमे अवश्य लिखें। हमे आपकी श्रेणी के बारे मे फजीहत सॉरी लिखने मे काफी अच्छा लगेगा। आपको लेख कैसा लगा, टिप्पणी द्वारा सूचित करें, नोट :टिप्पणी में गॉली गलौच लिखने से बचें। बुरा ना मानो दशहरा है।

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