Saturday 30 July 2011

फ्लर्टिंग में लिमिट्स हैं जरूरी

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किसी इंसान के फ्लर्ट या छेड़खानी करने और सेक्शुअली अटैक करने में काफी फर्क होता है। अक्सर लोग इसका सही अंदाजा नहीं लगा पाते और नतीजा होती हैं इमेज खराब करने वाली कंट्रोवर्सीज। आइए, एक्सपर्ट्स से जानते हैं कि फ्लर्टिंग में कहां लाइन खींचने की जरूरत है :

किसी से मिलने-जुलने और हेल्दी फ्लर्टिंग में हालांकि कोई बुराई नहीं है, लेकिन बिहेवियर की लिमिट्स जानना जरूरी है। दरअसल, छेड़खानी या फ्लर्टिंग का मतलब सिर्फ बोलकर छेड़ना या फिर हंसी-मजाक करने तक ही सीमित है।

खास बात यह है कि इसमें दोनों पार्टियां एंजॉय करती हैं। हालांकि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि ऐसी बातों के दौरान कब किसकी नीयत बदल जाए।

पिछले कुछ दिनों से चर्चा में चल रहे फ्रांस के प्रेजिडेंशल कैंडिडेट और इंटरनैशनल मोनेट्री फंड के हेड डोमिनिक स्ट्रास कान को ही लें। वह न्यू यॉर्क की एक होटेल मेड के साथ रेप की कोशिश के बाद सुर्खियों में हैं।

हालांकि अभी यह पता नहीं लग पाया है कि कान ने वाकई गलती की थी या फिर वह पॉलिटिक्स के शिकार हो गए हैं। लेकिन इस घटना के बाद यह मुद्दा जरूर उभर कर आया है कि ऐसी कंट्रोवर्सीज से बचने के लिए सामने वाले के व्यवहार को परखना और खुद का बिहेवियर बैलेंस्ड रखना जरूरी है।

एक्सपर्ट्स का कहना है कि अक्सर किसी व्यक्ति की गलत हरकतों को छेड़खानी समझकर इग्नोर कर दिया जाता है, जबकि दोनों चीजों में काफी फर्क है। अगर समय रहते इन्हें चेक न किया जाए, तो वह डेकोरम छोड़कर सेक्शुअल अटैक पर भी आ सकता है।

देखने में आया है कि जो लोग लगातार फ्लर्ट या छेड़खानी करते रहते हैं, उनमें सेक्शुअल अटैक की इच्छाएं पनपने लगती हैं।

क्रॉस द लाइन
सायकायट्रिस्ट डॉ. हरीश शेट्टी कहते हैं कि संभावित सेक्शुअल असॉल्टर को पहचानने के लिए आपको कुछ खास चीजों का ख्याल रखना होगा। वह शुरुआत में एकदम हमला करने की बजाय डबल मीनिंग बातें करेगा। बकौल डॉ. शेट्टी, 'आप उसे जितनी जल्दी पहचान लेंगे उतना अच्छा होगा। ऐसा इंसान अपनी असली इच्छा जाहिर करने की बजाय आपसे मिलने के बहाने ढूंढेगा।

मसलन वह आपसे कहेगा कि मेरी गर्लफ्रेंड या वाइफ बेहद बोरिंग है, अगर तुम साथ आ जाओ तो मजा आ जाएगा या फिर मैं तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ आता हूं या मैं तुम्हारे लिए हमेशा तैयार हूं।'

यानी अगर कोई आपसे अचानक इस तरह की बातें करने लगे, तो आपको सावधान हो जाना चाहिए। इस दौरान वह फ्लर्ट नहीं, बल्कि आपके साथ कुछ और करने की सोच रहा है। ऐसे में इंसान की बॉडी लैंग्वेज भी बदल जाती है। इसलिए आपको भी आने वाले खतरे का अंदाजा हो जाना चाहिए। अगर कोई मजाक में या किसी और बहाने से बार-बार आपको टच करने की कोशिश कर रहा है, तो आपको उसके खतरनाक इरादों को फौरन भांप जाना चाहिए।

पावरफुल से संभलकर
खासकर ऊंची पोजिशन वाले लोग ऐसी हरकतें करने में कतई नहीं हिचकिचाते। शेट्टी पंजाब पुलिस के एक्स डीजीपी केपीएस गिल का उदाहरण देते हैं। वह बताते हैं, 'उन्होंने एक पार्टी में सीनियर आईएएस ऑफिसर रुपेन देओल के साथ मिसबिहेव किया। रुपेन ने उनके खिलाफ केस कर दिया और आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने गिल को सजा दी।'

दरअसल, ऊंची पोजिशन पर बैठे लोग अक्सर यही सोचते हैं कि उनके जूनियर उनकी बदतमीजी सहन कर लेंगे और शिकायत नहीं करेंगे, इसलिए उन पर हाथ डालना आसान है। इसी वजह से वे उनसे बिना हिचक गलत व्यवहार कर बैठते हैं। अगर आपका सीनियर आपको जरा भी गलत नजर से देखता है या फिर ऐसी कोई कोशिश करता है, तो आप सावधान हो जाएं और सीनियर ऑफिसर्स से उसकी कंप्लेंट करें।

ऑफिस डेकोरम
ऑफिसों में सेक्शुअल हरासमेंट काफी कॉमन है। यहां सामने वाला आपकी ड्रेस को लेकर कॉमेंट से लेकर आपके बॉडी पार्ट्स से छेड़खानी तक कुछ भी कर सकता है। एचआर कंसलटेंट शिशिर दवे कहते हैं, 'कलीग्स के बीच इतना मजाक ठीक है कि उससे किसी को नुकसान न हो, लेकिन अगर कोई किसी को लगातार टारगेट करे और सेक्शुअल डिमांड करे, तो यह बर्दाश्त के बाहर होगा। भले ही ऑफिस में आपको कोई कुछ नहीं कहता, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि आप बेलगाम हो जाएं। आखिरकार ऑफिस में आपसे एक प्रफेशनल डेकोरम की उम्मीद की जाती है।'

फिर होता है एक्शन
हालांकि कई बार लोग ऐसे रिमार्क कर देते हैं, जो वे करना नहीं चाहते या उनकी वैसा कुछ कहने की उनकी मंशा नहीं होती। ऐसे में एचआर और सेंसिटिव एंप्लॉई इस बात का ख्याल रखते हैं कि एक गलत हरकत से किसी को नुकसान न हो। हालांकि अगर कोई एंप्लॉई लगातार ऐसा कर रहा है, तो उसे बाहर का रास्ता दिखाया जाना चाहिए। बकौल दवे, 'अगर कोई लगातार उलटी-सीधी हरकतें कर रहा है, तो उसे मेमो जारी किया जाता है। और अगर किसी ने फिजिकली छेड़छाड़ की है, तो उसे तुरंत बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है। खासकर कॉल सेंटर्स में ज्यादातर एंप्लॉइज ऐसे होते हैं, जो कॉलेज से निकल कर सीधा ऑफिस जॉइन कर लेते हैं। ऐसे में उनका काफी ध्यान रखना होता है। तभी उन्हें साफतौर पर बता दिया जाता है कि आपका बॉस फ्रेंडली जरूर है, लेकिन फ्रेंड नहीं।'

यानी मतलब साफ है कि आपको अपने व्यवहार के साथ दूसरे के बिहेवियर की लिमिट्स भी पता होनी चाहिए। अगर आपने किसी बात के लिए एक बार ना कर दिया है, तो उसे कभी हां में ना बदलें। फ्लर्टिंग हेल्दी लिमिट्स तक ही ठीक है, क्योंकि इसके बाद अनवॉन्टेड सिचुएशंस का जाल बिछने लगता है

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