Tuesday 5 July 2011

मुस्कराहट सफल और सुखी जीवन की घोषणा


अंग्रेजों की एक कहावत है, 'लाफ्टर इज द बेस्ट मेडिसिन' अर्थात हंसी सर्वश्रेष्ठ दवा है। यह जहां मानसिक तनाव से राहत दिलाती है, वहीं मानवीय संबंधों को सुखद बनाकर हमारे पारिवारिक एवं सामाजिक जीवन को भी सफल बनाती है। आज हंसी वैज्ञानिकों के लिए गंभीर शोध का विषय बनी हुई है। इसके चिकित्सीय प्रभावों का काफी गहराई से अध्ययन किया जा रहा है।

अनुसंधानों से स्पष्ट हो चुका है कि हंसी स्वास्थ्य के लिए उतनी ही आवश्यक है, जितना कि उचित भोजन। जहां क्रोध, भय, ईर्ष्या, द्वेष जैसे नकारात्मक भाव शरीर पर घातक प्रभाव डालते हैं, वहीं हंसी के साथ मानव शरीर से ऐसे रसायनों का उत्सर्जन होता है, जो स्वास्थ्य पर अनुकूल प्रभाव डालते हैं। ठहाके लगाकर हंसने से शरीर में एंडोर्फिन नामक हॉर्मोन का उत्सर्जन होता है, जो शरीर में स्फूर्ति एवं प्रसन्नता लाता है।

प्रसन्न चित्त रहना मानसिक स्वास्थ्य के लिए सबसे आवश्यक है। आप गौर करेंगे कि उदास रहने वालों की अपेक्षा खुशमिजाज लोग अधिक स्वस्थ, उत्साही और स्फूर्तिवान होते हैं। हंसने से व्यक्ति अपने तनावों और कुंठाओं को भूलकर स्वयं को हल्का अनुभव करता है। ऐसा समझा जाता है कि यदि कोई दिन में 15 बार हंसे तो उसके डॉक्टर का बिल लगभग न के बराबर होगा। पश्चिम के एक प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक जोनाथन स्विफ्ट इसे बड़े ही दिलचस्प ढंग से समझाते हैं। वे कहते हैं कि दुनिया के तीन सबसे बड़े चिकित्सक हैं - डॉक्टर डाइट यानी संतुलित आहार, डॉक्टर पीस यानी शांति और डॉक्टर स्माइल यानी मुस्कान।

हास्य के लाभ अनगिनत हैं, यह थके हुए के लिए विश्राम है, हतोत्साहित के लिए दिल का प्रकाश, उदास के लिए दिन की धूप है तथा रोगी के लिए प्रकृति का सवोर्त्तम रोग प्रतिरोधी। इस पर खर्च कुछ नहीं आता, किंतु यह देता बहुत है। हंसी शरीर के विकारों का प्राकृतिक ढंग से उपचार करती है, हास्य तनाव से मुक्त करता है।

मुस्कराते हुए मनुष्य का सौंदर्य तत्काल दूना हो जाता है। क्रुद्ध व्यक्ति भी यदि मुस्कराने लगे तो उसका चेहरा कमल जैसा खिला हुआ दिखेगा। मुस्कराहट से आत्मविश्वास एवं आंतरिक संतोष झलकता है। होठों पर टंगी हुई यह तख्ती बताती है कि इस व्यक्ति के जीवन में सुख और संतोष है। इस अर्थ में मुस्कराहट सफल और सुखी जीवन की घोषणा है।

कुछ विचारकों के अनुसार हंसी एक सुखद अनुभव है, इसलिए इसके अवसरों को चूको मत। यदि हंसी आए तो खूब हंसो, खूब जम कर हंसो। हंसी क्यों आई, कब आई? इस सोच में मत पड़ो। हंसी स्वच्छंद झरने की तरह है। हंसाने वाली घटनाओं को याद करके, उन विनोद एवं उल्लासपूर्ण क्षणों को अनुभव करके, हम कभी भी अपने अंदर वह उल्लास पैदा कर सकते हैं। हंसी के इन क्षणों में शरीर रोमांचित हो उठता है और एक तरह से वह भीतर जमा हुए दिन भर के भारीपन को बुहार कर बाहर निकाल देता है।

आपने देखा होगा कि दिल्ली के कई सार्वजनिक पार्कों में वृद्ध व अन्य लोग खुलकर ठहाके लगाते हैं। ऐसे अभ्यास बुढ़ापे के एकाकीपन में विशेष रूप से उपयोगी है, जब उम्र के इस पड़ाव पर बहुतों को यह शरीर बोझ की तरह लगने लगता है। अकेले रहने की अपेक्षा लोगों के बीच रहने पर हंसी की संभावना कई गुणा अधिक होती है। हंसी बुढ़ापे को नजदीक आने नहीं देती। यह शरीर के लिए संजीवनी है।

आज भौतिकवाद की आंधी में हम इस तरह से बह गए हैं कि हंसते-हंसाते जीने का जज्बा ही भूल गए हैं। हमारी आकांक्षाएं बढ़ गई हैं। उपलब्धियां हमें संतुष्ट नहीं कर पातीं। ऐसे में दूसरों का संतोष एवं प्रगति भी हमारे लिए ईर्ष्या-द्वेष का कारण बन रही है। हंसी के यांत्रिक अभ्यास के साथ यदि हम जीवन की आध्यात्मिक शैली को भी अपना लें, तो ऐसे सादे- सरल जीवन में हंसी-खुशी के ढेरों अवसर आएंगे, जहां हम इनसे लाभान्वित होंगे। हमारा पारिवारिक एवं सामाजिक जीवन भी सरस और सुखी होगा। हास्य रूपी यह नैसगिर्क टॉनिक या दिव्य अस्त्र आजमाने योग्य है। इसे जीवन का एक अभिन्न अंग बना कर हम पूरे जीवन को उत्सव में बदल दे सकते हैं।

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