Sunday 13 November 2011

खुले मन से संवाद बढ़ाता है प्रेम


हेलो दोस्तो! डर से शायद ही किसी को एक पल के लिए भी मुक्ति मिलती हो। न जाने कितने प्रकार का डर हम अपने अंदर पाले रहते हैं। नए माहौल का डर, बिछुड़ने का डर, रोजगार जाने का डर, दूसरे की समृद्धि का डर, बदसूरत दिखने का डर, बुढ़ापे का डर, खोने का डर, चोरी का डर, बॉस का डर, भीड़-भाड़ का डर, सूनेपन का डर, भव्यता का डर, दूसरों की खुशियों का डर, अज्ञानता का डर, जानवरों का डर आदि-आदि। पर जिस डर से सबसे ज्यादा डर लगता है, वह है मनुष्य का सामना करने का डर। अपने जैसे ही किसी मनुष्य से संवाद बनाने में एक व्यक्ति सबसे ज्यादा डरता है। किसी मनुष्य से रूबरू होने में एक व्यक्ति को जितना संकोच, जितनी शंका और हिचकिचाहट होती है वह शायद ही किसी और परिस्थिति में होती है।

पति-पत्नी, माँ-बाप, बच्चे, भाई-बहन, सगे-संबंधी, आस-पड़ोस हो या दोस्त-अहबाब या प्यार करने वाले, आपस में संवाद बनाते वक्त किसी अनजाने डर के कारण सतर्क रहते हैं। यही वह स्थिति है जिसके कारण नए रिश्ते की शुरुआत नहीं हो पाती है। यह डर ही है जो अच्छे रिश्ते की संभावना को समाप्त कर देता है।

ऐसे ही डर से परेशान हैं संतोष, असीम, अमित, प्रवीण जैसे अनेक नौजवान। एक लड़की से मुखातिब होते समय इनकी हिम्मत जवाब दे देती है जबकि वे लड़कियाँ उन्हें देखकर अपने चेहरे पर पहचान का भाव लाती हैं। यूँ तो वे उनसे बहुत कुछ कहना चाहते हैं पर कह नहीं पाते हैं। उनके सामने जाते ही उनकी जुबान को ताला लग जाता है और उनकी घिग्घी बँध जाती है। वे हजार कोशिशों के बावजूद सामान्य नहीं रह पाते हैं। लड़की से कुछ न बोल पाने के कारण उनका मन घुटन से भर जाता है और बहुत सारा समय अपने ऊपर खीझने में बीत जाता है। उन्हें लगता है क्या करें जो वे इस समस्या से पार पाएँ।

जिन लड़कों की बचपसे महिला दोस्त नहीं रही हैं उन्हें ये समस्याएँ ज्यादा आती हैं। कई लड़के ऐसे भी बड़े होते हैं जिनके घर में रिश्तेदार हमउम्र बहनें नहीं होती हैं। ऐसे नौजवान लड़के नहीं समझ पाते हैं कि वे लड़कियों से कैसे बात करें। जीवन में लड़कियों से सामान्य दोस्ती नहीं होने के कारण जो पहली लड़की भाती है उसे जाने बिना ही वे दिल दे बैठते हैं या बहुत दूर की सोच लेते हैं। इसी कारण संकोच, घबराहट और भी बढ़ जाती है।

इतनी सारी अपेक्षाओं के बाद संवाद बनाने में डर तो लगेगा ही। अगर लड़की ने उसी लहजे और डिग्री में जवाब नहीं दिया तो ठुकराए जाने का भय भी कदम रोक देता है। जिस प्रकार कोई व्यक्ति नौकरी या काम लेने जाए तो सारी तैयारी और योग्यता के बावजूद इनकार का डर उस पर हावी रहता है क्योंकि उस वक्त वह सामने वाले के आकलन पर होता है। अगर हम कई साक्षात्कार दे चुके होते हैं और हमारे पास बेहतर विकल्प मौजूद होता है तो हमारा डर भी कम होता है।

उसी प्रकार यदि आप किसी व्यक्ति से चाहे वह लड़की या लड़का हो बिना किसी अपेक्षा से मिलें तो आपको उससे संवाद बनाने में डर नहीं लगेगा। यदि कोई साधारण सी बात का भी जवाब नहीं देती है तो उससे बात ही क्यों करनी है। आपने उससे टाइमटेबल पूछ लिया। किताब, नोटबुक या पेन माँग लिया और उसने सहजता से आपकी बातों का जवाब दे दिया, इसका मतलब यह कतई नहीं है कि वह आपको प्यार करने लगी है। चार दिन की बातचीत के बाद यदि आप प्रेम पत्र पकड़ा दें तो वह लड़की अवश्य ही आपको भला-बुरा कहेगी।

जिन लड़कों को लड़कियों से बात करने में डर लगता है उन्हें केवल एक लड़की के बारे में नहीं सोचकर आगे बढ़ना चाहिए बल्कि कई लड़कियों से बातचीत करनी चाहिए ठीक वैसे ही जिस प्रकार आप किसी भी लड़के साथी से मुखातिब होते हैं। उनसे कोई विशेष अपेक्षा नहीं होती है तो कोई द्वंद्व भी मन में पैदा नहीं होता है। इसी प्रकार लड़कियों से भी पुरुष साथियों की तरह बात करनी चाहिए। समय बीतने के साथ-साथ ही पता चल सकता है कि उनमें से कोई अच्छी दोस्त या प्रेमिका बन भी सकती है या नहीं।

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