Sunday 5 August 2012

प्रेम रोग

यार वह लड़की अच्छी लगती है। दिखी नहीं 2-4 दिन से। तो नहीं दिखी तो ाने दे। नहीं यार उसकी ड्रेस अच्छी लगती है। उसके कट्‍स भी अच्छे हैं। क्यों तेरे को देखती है क्या। मेरे को देखे चाहे नहीं देखे, मैं उसे देख लूँ तो दिल के चैन के लिए यही काफी है।

दोस्त जब कहें, तुझे कहीं प्यार तो नहीं हो गया है। अरे नहीं यार! ऐसा कुछ नहीं है। बस यूँ ही टाइम पास हो जाता है। वैसे भी प्यार-व्यार सरीखी फोकट चीजों के लिए टाइम नहीं है मेरे पास।

इतने में रीतिका आती हुई दिखी तो पूरब की बाँछें खिल गईं। बस उसके बाद तो इनकी दिनचर्या ही बदल गई। जो काम नहीं करते थे वो करने लग गए। जो करते थे उसमें अब इनका मन उतना नहीं लगता। रोमांटिक बातें इन्हें अच्छी लगें। रोमांटिक एसएमएस का पेज कल तक उठाकर नहीं देखते थे आज उसके सिवाय कुछ पढ़ते नहीं।

शेरो शायरी की लिंक तो जिसने इनको भेज दी, ये उनके मुरीद हो गए। पूछो ऐसा क्यों। बस ऐसे ही यार अच्छी लगती है। ये कमलेश नाम का है ना ये बहुत बढ़िया एसएमएस भेजता है। कल वह क्लास में आई तो क्या पहनकर आई इनको याद है, उसके पहले क्या पहना था। यह भी याद है।

एक दिन तो हद ही हो गई जब‍ पिछले 8 दिनों की ड्रेस के आधार पर अंदाजा लगाया और नौवें दिन मोहतरमा इनके ही अनुमान की ड्रेस पहनकर आ गईं। उस दिन तो महाशय रात में 2 घंटे देर से सोए। लेकिन जुबान पर वही है प्यार-व्यार नाम की कोई चीज नहीं होती। लैला-मजनूँ, हीर-राँझा इनको बेवकूफ ही लगते हैं।

एक दिन तो हद हो गई। वह इन्हें देखकर मुस्कुरा भर दीं तो दिनभर वह दृश्य आँखों के सामने से हटा नहीं। इनका नाम पूछ लिया तो इनके पहले तो हाथ-पाँव काँप रहे थे जैसे-तैसे लड़खड़ाती जुबान से बताया। औपचारिकता बतौर पूछ भी लिया - जवाब मिला रीतिका। और दुनिया के सबसे खूबसूरत नामों की फेहरिस्त में उसे सबसे ऊपर रख दिया।

उसके बारे में कोई उल्टा सीधा बोले इन्हें मंजूर नहीं। उससे जाकर कोई और बात करे इन्हें मंजूर नहीं। घर आएँ जो फुर्सत में मिले उसे किस्से सुनाएँगे तो कहीं न कहीं रीतिका जुड़ी ही रहेगी। महाशय से कहो - अब तो तुमको प्यार हो गया है। अरे नहीं यार कैसी बात करता है। वह तो केवल दोस्त है। जरा सा किसी से हँस के बोल लो, उससे क्या होता है।

मोबाइल लगाना है तो बस एक ही नंबर याद है इन्हें। एसएमएस भी करना है तो दूसरा कोई नंबर नहीं सूझता। घर पर कुछ लिखने बैठेंगे तो सवाल बाद में पहले नामों के साइन बनाना शुरू। मन को बहलाने को कापी-किताब खोल तो ली है, मगर चेहरा सामने है रीतिका जी का।

रीतिका इतनी अच्छी क्यों लगती हैं पता नहीं। दिखने में उनसे भी अच्छी लड़कियों से क्लास भरी पड़ी है। पूरब को किसी काम से जाना पूर्व में है लेकिन पश्चिम में पहले जाएँगे उनके घर तरफ उसके बाद पूरब जाएँगे। यानी हर रास्ते में उनका घर तो पड़ेगा ही। ये रूट ही कुछ ऐसा फॉलो करते हैं।

"ज़िंदगी के मोड़ पर जो कोई रास्ता मिला तेरी गली से जा मिला "
कोई दोस्त उस ओर जा रहा है तो भी उसके साथ निकल जाएँगे। आओगे कैसे तो पैदल आ जाऊँगा। मोहतरमा ने एक दिन इनको किटकैट टॉफी लाकर दे दी। उसके बाद इनको कोई सी दूसरी टॉफी नहीं भाई। नोट्‍स के लिए कॉपी माँगी तो नोट तो कुछ किया नहीं। 8 दिन सीने से लगाकर रखी और नौवें दिन लौटा दी।

दोस्तों से मिलने के लिए आजकल समय नहीं है इनके पास। कहाँ रहते हो। बस यूँ ही थोड़ा पढ़ाई में व्यस्त हूँ। इसलि समय नहीं मिल पा रहा। सैकड़ों रोमांटिक गाने इनकी जुबान पर आ गए और सीडीज में लोड भी हो गए।

इन दोस्त भी बदल गए इश्क के उस्तादों से अब इनको दोस्ती करनी है। मेहबूबा क्या चाहती है। इनसे आकर ऐसे पूछते हैं। कद्र तो इनकी इतनी करते हैं जितनी कभी कॉलेज के प्रोफेसर की भी नहीं की। प्रेम-पत्र लिखना कौन सिखाएगा। यही गुरु सिखाएँगे। लड़की सेट होगी कैसे यही बताएँगे।

आगे बात बढ़ते-बढ़ते दोनों रेस्टॉरेंट में मिलने लगे, सिनेमा साथ देखने लगे, कोई भी विशेष दिन पर एक-दूसरे को विश करना नहीं भूलते। ग्रीटिंग्स लाकर देना शगल बन गया। अकेले में बैठे हँस रहे हैं क्यों तो रीतिका की बात याद आ गई थी। मैंने ऐसा कहा तो वो ऐसा कह रही थी आदि।

दाढ़ी-कटिंग, ड्रेस इन पर कौन सी अच्छी लगती है जो मैडम ने इन्हें बताई है। उसके अलावा किसी की सुनने को तैयार नहीं।

एक दिन तो मैडम का मोबाइल रेंज में नहीं आ रहा था। चैन नहीं, क्या हो गया। उनकी सहेली से पूछा तो पता चला उसे अचानक किसी काम से बाहर जाना पड़ा। इनकी बेचैनी की सारी हदें टूट गईं। उदासी चेहरे पर इतनी कि बीमार दिखने लगे। अब कैसे बताएँ कि इनकी रामबाण औषधि क्या है और कहां है। यदि आपके साथ भी यही सब हो रहा है तो समझ लीजिए कि कहीं न कहीं इस 'प्रेम रोग' के कीटाणुओं का हमला आप पर हो चुका है और इस रोग से ग्रसित हो गए हैं।

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